लॉकडाउन के बीच मजदूरों का पलायन जैसे ना खत्म होने वाली दास्तां बनती जा रही है. प्रवासी मजदूरों के पलायन की ये कहानी न सिर्फ दर्दनाक है, बल्कि इसने पूरे सिस्टम के खोखलेपन की पोल खोलकर रख दी है. कोई पैदल, कोई साइकिल पर, कोई रिक्शा पर तो कोई ठेले पर, जिसे जो मिल रहा है उसी का सहारा लेकर मजदूर चले जा रहे हैं. सड़कों पर एक खत्म न होने वाली कतार सी नजर आ रही है. यह मजदूर अपने घर जाना चाहता है इसे घर पहुचाने के लिए सरकार ने ट्रेन की व्यवस्था तो की है लेकिन मजदूरों का इत तरह से अपने घर जाना इसकी खिलाफी करता है कोरोना का खतरा होने के बावजूद यह परिवार झुंड में पैदल हजार हजार किलोमीटर दूरी तय करके हर रोज अपने घर पहुच रहे है। लेकिन इनकी भीड़ कम होती नहीं दिख रही । दिन ब दिन यह बढती जा रही है। जिसे रोक पाना अब सरकार के बस की बात नहीं है। सरकार चाहती तो इन्हे पहले ही अपने गंतव्य तक पहुचा सकती थी। यह इनके रहने खाने की व्यव्स्था करती लेकिन किसी ने भी इन दिहाड़ी मजदूरों को पूछ परख नहीं की । और जिस तरह से यह प्रवासी मजदूर अपने गृह गांव जाने के लिए अब विद्रोह पर उतर आए है उसने सरकार की नींद उड़ा दी है और मजदूरों की ताकत उन्होने सरकार को दिखा दी है। मुंबई के बांद्रा स्टेशन के बाहर मंगलवार को मिक स्पेशल ट्रेन पकड़ने के लिए पांच हजार से ज्यादा लोग इकट्ठा हो गए।इस दौरान यात्रियों ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ी।गुजरात राजस्थान महाराष्ट्र दिल्ली मध्यप्रदेश और भी ऐसे कई राज्य है जहां से मजदूर अपने घर की ओर पलायन कर रहे है। और कई जगह एक साथ होके अपना विरोध भी दर्ज कर रहे है। चाहे वो बड़वानी की बार्डर हो या सूरत में बस टर्मिनल में इकट्टा हुए हजारों मजदूर हो , मुंबई में भी हजारों मजदूरो ने सोशल या फिजीकल डिस्टेंसिंग को ठेंगा दिखाते हुए एकत्र होकर सरकार का विरोध किया है। और अपनी ताकत सरकार को दिखाई है। अब भी स्थिती सरकार के हाथ से निकल गई है लेकिन अभी भी राज्य औऱ केंद्र सरकारें चाहें तो निशुल्क ट्रेन चलवा कर सही तरीके से इन्हे अपने घर पहुचाएं क्योंकि इनके एकत्र होने से और सड़को पर खुलेआम चलने से कोरोना संक्रमण का खतरा और बढ़ सकता है और सरकार के साथ सारे देश की परेशानी बढ़ा सकता है।