छिंदवाड़ा जिले में पर्यटन और पुरातत्व विभाग के द्वारा सिर्फ देवगढ़ के किले को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन इस देवगढ़ के किले से भी प्राचीन प्रतिमा और स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण गोदड़देव मंदिर में देखा जा सकता है।पुरातत्व विभाग के द्वारा मंदिर प्रांगण में जो बोर्ड लगाया गया है। उसमें मंदिर का स्थापना काल 13 वीं शताब्दी का बताया जाता है।लेकिन कुछ इतिहासकारों का दावा है कि गोदड़देव का यह मंदिर छठवीं शताब्दी में बनाया गया था। इस मंदिर के आसपास 12 ज्योतिर्लिंग की तर्ज पर 12 शिवालयो का भी अस्तित्व था। कालांतर में उपेक्षा का शिकार होते होते अब सदियों पुराना मंदिर ढ़हने की स्थिति में आ चुका है। गोदड़देव का यह प्राचीन मंदिर छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर चाँद तहसील के अंतर्गत नीलकंठ और पारस गांव के बीच स्थित गुर्जर देव में करीब 4 किलोमीटर के दायरे में हैं। उज्जैन के महाकाल मंदिर और खजुराहो के कंदरिया महादेव की तरह ही छिंदवाड़ा के गोदड़ देव मंदिर में विशाल पत्थर का मंडप,चावड़ा मंदिर, शिवलिंग,नंदी, मूर्ति नक्काशी द्वार और सीढ़ियां गोदर देव को पुरातत्व का एहसास कराती हैं। आस्था पर्यटन और पुरातात्विक महत्व को लेकर भी यहां की अपनी एक अलग ही पहचान है। हालांकि पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था पुरातत्व विभाग और संग्रहालय ने मंदिर की निर्माण शैली और इतिहास के बारे में एक संक्षिप्त सूचना बोर्ड मंदिर परिसर में लगाया है। जिसके अनुसार विदर्भ के देव गिरी के राजाओं ने इस क्षेत्र में राज्य किया है।जो त्रिपुरी कलचुरी राजाओं के समकालीन थे।कलचुरी के समकालीन एवं राज्य सीमा से लगे होने के कारण इस मंदिर का वास्तु शिल्प लगभग कलचुरी स्थापत्य से मिलता है। कई प्राचीन मूर्तियां आज भी आसपास के क्षेत्र में खुदाई में मिलती है साथ ही देवनागरी लिपि भी प्राचीन चट्टानों में मिली है भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। दूर-दूर से यहां श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन का लाभ लेने आते हैं। हर साल मकर संक्रांति पर भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। यहां पर 45 वर्षों से लगातार भागवत कथा का आयोजन भी किया जा रहा है। ऐतिहासिक धार्मिक और पुरातात्विक धरोहर होने के बाद भी गोदड़ देव का मंदिर प्राचीन मंदिर पर्यटन और पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।