राष्ट्रीय
16-May-2020

कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन लागू किया। जिसके 22 दिन बाद शहरों से गांवों की तरफ़ मज़दूरों का पलायन शुरू हुआ. लॉकडाउन के बाद से देश भर में रेल एवं बस सेवा बंद है। सड़कों पर परिवहन के कोई साधन उपलब्ध नहीं है. इस स्थिति में यह भूखे प्यासे मज़दूर, साइकिल पर या पैदल अपने गाँवों की तरफ़ लौट पड़े। यह मजदूर पैदल ही अपने कंधों पर मासूम बच्चों को उठाए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी नाप रहे हैं। पलायन का यह सिलसिला अब भी थमता नहीं दिख रहा. हर रोज़ शहरों से लाखों की संख्या में मज़दूरों का पलायन जारी है। पलायन के दौरान कई मजदूरों की रास्ते में मौत भी हो चुकी हैं ।प्रवासी मजदूरों के घर लौटने के जो अनुभव सामने आ रहे हैं उसके बाद शायद ही वह जल्द काम पर लौटना चाहें. मजदूरों की इस बदहाली के पीछे सरकार द्वारा बिना तैयारी के लॉकडाउन लागू करने का निर्णय माना जा रहा है. हालांकि की कुछ लोगों का कहना है कि सरकार के पास लॉकडाउन के अलावा कोई और रास्ता नहीं था,तो कम से कम सरकार को मजदूरों के रहने और खाने पीने की व्यवस्था तो करनी थी जो नहीं की गई। चीन और इटली भयावहता को देखते हुए सरकार ने पहले से ही लॉकडाउन की बेहतर तैयारी क्यों नहीं की क्यों एक माह तक मजदूरों को भूखा प्यासा उनके हाल पर छोड़ा गया कई मजदूरों ने तो परिवार को गरम पानी में चावल उबाल कर बच्चों को खिलाया। मजदूरों का कहना है कि रोज-रोज भूखे प्यासे किस तरह से हम लोग जी रहे थे। इसकी कल्पना भी आप लोग नहीं कर सकते हैं। भूख से हम लोग मर रहे थे । पलायन करने के पीछे उनका कहना है कि भूख से जब बचते तभी तो कोरोना से मरते। मजदूरों ने कहा भूख को शांत करने के लिए भिखारियों की तरह लाइन में खड़े रहकर खाना प्राप्त करना चाहा वह भी नहीं मिला। इसके बाद भी सरकार कह रही है कि रुको, हम तुम्हारे लिए ट्रेन और बसों का इंतजाम करेंगे। कब इंतजाम करेंगे जब हम लोग भूख प्यास से मर जाएंगे। पलायन का यह सिलसिला भारत औऱ पाकिस्तान के विभाजन जैसा दिख रहा है। 1947 मे पाकिस्तान-भारत का विभाजन होने पर, लोग एक देश से दूसरे देश में जा रहे थे। दंगों के कारण बदहवासी थी। लोग अपनी जान बचाने जैसे तैसे भाग रहे थे। इस बार लॉक डाउन लागू होने से भूखे प्यासे गरीब मजदूर , अपने बच्चों के साथ बड़े शहरों से अपने घरों तक जा रहे है कोई पैदल तो कोई साईकिल से। सड़क मार्ग या, ट्रेन मार्ग का सहारा लेकर घरों की ओर जा रहे है। रास्ते में खाने-पीने को कोई दे दे तो ठीक वरना मजबूरन चलना पड़ रहा है जहां थके वहीं सो गए । जगह-जगह पुलिस के डंडे खाकर बदहवासी में अपनी और परिवार की जान बचाने के लिए भाग रहे हैं। यह दृश्य जो भी देखता है कलेजा मुंह में आ जाता है, लेकिन सरकार और प्रशासन के बड़े-बड़े दावे की जमीनी स्थितियां ठीक इसके विपरीत हैं । गरीब नर में नारायण देखने वाले देश में नारायण की यह स्थिति होगी यह किसी ने सोचा भी नहीं था जो देखने को मिल रहा है ।


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