स्वतंत्रता संग्राम के गौरवमयी इतिहास में पूरे मध्य भारत का सबसे समृद्ध इतिहास यदि किसी क्षेत्र का है तो वह सीहोर का है। यहॉ अंग्रेज सैनिकों की छावनी थी। सन 1857 के इतिहास के पन्नों में सीहोर में हुई सैनिक क्रांति दर्ज तो है लेकिन आज तक इसे स्थानीय स्तर पर ही शासन द्वारा महत्व नहीं मिल सका है। अनेक ऐतिहासिक पुस्तकों में सीहोर के इतिहास की दास्तां लिखी है। सिपाही बहादुर सरकार के गठन से लेकर उसके जांवाज 356 सैनिकों के जनरल ह्यूरोज द्वारा कराये गये सामुहिक हत्याकाण्ड के घटनाकम को सीहोर शायद भूलता जा रहा है। देश की स्वतंत्रता के 73 साल बीत जाने के बाद भी सीहोर का गौरवमयी स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास की गौरव गाथा पर नये सिरे से थोड़ा शोध कार्य होना चाहिये। सिद्धपुर की वीर धरा पर भारत का पहला स्वतंत्रता का आंदोलन सबसे दमदारी के साथ लड़ा गया था। 6 अगस्त 1857 से लेकर 14 जनवरी 1858 तक पूरे 6 माह तक हम पूरे सीहोरवासी स्वतंत्र थे। यहॉ अंग्रेजों की छावनी में ही भारतीयों ने सारे अंग्रेजों को खदेडक़र भगा दिया था और सिद्धपुर को आजाद करा लिया था। हवलदार महावीर कोठ, रमजूलाल, बलि शाह, आरिफ शाह, फाजील मोहम्मद आदि विद्रोही सिपाही नेतृत्व कर रहे थे। क्रांतिकारियों के नेतृत्व में सिपाही बहादुर सरकार का गठन कर प्रजातांत्रिक तरीके से सीहोर में 6 माह तक महावीर कौसिंल के नाम से शासन हुआ। अंग्रेजों के झण्डे को उतारकर निशाने मोहम्मदी व निशाने महावीरी नामक दो झण्डे पूरे 6 माह तक पूरी शान से लहराते रहे। सीहोर में सिपाही बहादुर सरकार महावीर कौंसिल के संस्थापकों ने अंग्रेजों को मार-मारकर खदेड़ दिया था। नवाब सिकंदर जहॉ बेगम व अंग्रेजों के झण्डे उखाड़ दिये थे। लेकिन इन वीरों का उल्लेख आजादी के बाद लिखे व पढ़ाये जा रहे इतिहास में नहीं किया जा रहा। पूर्व मुख्यमंत्री माननीय दिग्विजय सिंह के शासन का