राष्ट्रीय
15-Aug-2020

अंग्रेज कभी भारत छोड़कर जाना नहीं चाहते थे हिंदू और मुस्लिमों को लड़ाकर शासन किया अंग्रेजों ने विभाजन के बाद भी भारत को आर्थिक रुप से गुलाम बनाने की साजिश भारत के विभाजन को लेकर तरह-तरह की बातें और तथ्य स्वरुपता के पश्चात सामने आए हैं। कहा जाता है, जवाहरलाल नेहरू की महत्वाकांक्षा के कारण भारत का विभाजन हुआ। महात्मा गांधी द्वारा पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने आमरण अनशन किया। उसके कारण नाथूराम गोडसे ने नाराज होकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी। इसी तरह अखंड भारत की परिकल्पना को लेकर भी तरह-तरह से कल्पनाओं पर आधारित बातें स्वतंत्रता के बाद लिखी गई। इतिहास को पढ़ने और समझने का मौका नई पीढ़ी को नहीं मिला। जिसके कारण स्वतंत्रता के पश्चात सत्ता में काबिज होने के लिए इतिहास की काल्पनिक कहानियां बनाकर पेश की गई हैं। भूत को जानकर वर्तमान से जोड़कर ही भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता है। इतिहास से सबक लेने की जरूरत होती है।यदि इतिहास को ही तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया जाएगा, तो निश्चित मानिए भविष्य भी टूटा फूटा ही बनेगा। वर्तमान को कभी इतिहास में लौटाया भी नहीं जा सकता है। भारत और पाकिस्तान का विभाजन और भारत को स्वतंत्र करना अंग्रेजों की मजबूरी थी। प्रथम एवं द्वितीय युद्ध के बाद इग्लैंड की आर्थिक स्थिति डवाडोल थी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से निपटना अंग्रेजों के लिए भारी पड़ रहा था। इसी मजबूरी और हताशा के बीच और भविष्य में पुनः भारत में दबदबा बनाए रखने राज्य करने की अंग्रेजों की कूटनीति को समझने के लिए इतिहास जानना जरुरी है। 3 जून 1947 को माउंटबेटन योजना के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच की विभाजन की सीमा लंदन में तय कर दी गई थी। लंदन के वकील सिरिल रेडक्लिफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा तय करते हुए, भारत और पाकिस्तान को 3 जून 1947 को ही बांट दिया था। हिंदू बहुमत वाले इलाके भारत को सौपे गए। मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान को दिए गए। बटवारा करते समय बंगाल प्रांत, पंजाब प्रांत और मुंबई प्रेसिडेंसी को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। बंगाल प्रांत के पूर्वी हिस्से को पाकिस्तान से जोड़ा गया। पश्चिमी हिस्से को भारत से जोड़ा गया। पंजाब प्रांत के भी दो भाग किए। एक हिस्सा पाकिस्तान चला गया और दूसरा हिस्सा भारत में रह गया। मुंबई प्रेसिडेंसी का भी बहुत बड़ा हिस्सा था। इसमें कराची पाकिस्तान के साथ चला गया। गुजरात और मुंबई से लगा समुद्री क्षेत्र भारत के हिस्से में आ गया। लार्ड लुईस माउंटबेटन योजना के तहत 3 जून 1947 को ही लंदन में भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का प्रारुप अंग्रेजो ने तय कर दिया था। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर भारत और पाकिस्तान को बांटने का काम अंग्रेजो ने कर दिया था। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि अविभाजित भारत, ब्रिटिश शासन काल में सीलोन जो अब श्रीलंका है। इसी तरह वर्मा जिसे अब म्यांमार कहते हैं, यह भी भारत का हिस्सा था। अंग्रेजों ने जिस तरह से भारत और पाकिस्तान को बांटा। उसी तरह से अंग्रेंजो ने ही सीलोन और वर्मा को भी भारत को अलग करके स्वतंत्र किया था। अत: यह कहना कि जवाहरलाल नेहरू की महत्वाकांक्षा के कारण भारत दो हिस्सों में बटा, यह गलत है। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम को पारित किया था। उस समय भारत और पाकिस्तान को मिलाकर 565 राजे रजवाड़ों को अंग्रेजों ने आजाद कर दिया था। इसी अधिनियम में प्रावधान था, जो भी राजा, भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल होना चाहता है। वह अपनी मर्जी से शामिल हो सकता है। स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई कांग्रेस लड़ रही थी। कांग्रेस के नेता विभाजन के पक्ष में नहीं थे। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ने दो राष्ट्र का विभाजन किए जाने का प्रस्ताव बंगाल असेंबली से पारित किया था। इसी प्रस्ताव को आधार बनाकर अंग्रेजों ने भारत को, हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र के बीच बांटा। आम जनता के बीच पिछले कुछ दशकों में सुनियोजित रूप से यह प्रचारित किया गया है, कि जवाहरलाल नेहरू की प्रधानमंत्री बनने की जिद के कारण भारत का विभाजन हुआ, यह सही नहीं है। प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के चलते ब्रिटिश उपनिवेश शासित सभी देशों में अंग्रेजो के खिलाफ, काफी चुनौतियां बढ़ गई थी। सभी उपनिवेश में स्वतंत्रता के आंदोलन चल रहे थे। भारत में इसकी अगुवाई कांग्रेस कर रही थी। अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए हर संभव प्रयास किया। स्वतंत्रता आंदोलन में जिस तरह से हिंदू मुस्लिम जुड़े हुए थे। आम लोगों की भागीदारी कराने के लिए महात्मा गांधी ने हरिजनों और आदिवासियों को भी इस लड़ाई में जोड़ लिया था। जिसके कारण अंग्रेजों की परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। आंदोलन को विभाजित करने के लिए 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना अंग्रेजो की सहायता ढाका में कराई गई। इसका उद्देश्य था कि स्वतंत्रता आंदोलन से मुस्लिमों को अलग किया जाए। मुस्लिम लीग, अंग्रेजी शासन की इस मंशा को पूरा नहीं कर पाई। इसका मुख्य कारण था की लगभग 4 शतकों में हिंदू मुस्लिम साथ रहना सीख गए थे। वह अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से परेशान थे। जगह-जगह हो रहे स्वतंत्रता आंदोलन और उग्र विरोध को देखते हुए अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की नीति अपनाते हुए हिंदू और मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने के प्रयास में जो मुस्लिम लीग बनवाई थी। जब यह कोई प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाई। अंग्रेजी शासन की मदद से 1915 में हिंदू महासभा का गठन हुआ। दामोदर राव सावरकर इसके पहले सभापति बने। केशव बलिराम हेडगेवार हिंदू महासभा के उपसभापति थे। अंग्रेजों की यह कोशिश भी कोई बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हुई। कांग्रेस का स्वतंत्रता आंदोलन धीरे धीरे सारे देश में फैलता रहा। हिंदू और मुस्लिम के नाम पर जब भारत के लोग विभाजित नहीं हुए। तब 27 सितंबर 1925 को एक वैचारिक संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का, दशहरा के दिन नागपुर में गठन हुआ। संघ की स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कभी सीधे-सीधे फ्रंट पर नहीं आया। यह अंदर ही अंदर हिंदुओं के बीच, अखंड भारत, धार्मिक आधार पर, हिंदुओं को एकजुट होने और मुस्लिमों से हिंदुओं की रक्षा करने के लिए एकजुट करता रहा। अंग्रेजी शासन की सहायता करने का काम मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करते रहे। अंग्रेजो को सूचनायें देने और आंदोलन दबाने के लिए इनकी बड़ी भूमिका थी। 1915 के बाद से भारत में हिंदू और मुस्लिमों के बीच तनाव बढ़ाने के लिए सुनियोजित प्रयास किए गए। यह इसी बात से समझा जा सकता है कि जब मोहम्मद अली जिन्ना और बाल गंगाधर तिलक ने मिलकर जो उस समय हिंदू और मुस्लिम एकता के सबसे बड़े पक्षधर थे। इन्होंने 1916 में तिलक-जिन्ना पैक्ट बनाकर, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौते कराने की कोशिश की। इन दोनों ने मिलकर सत्ता में हिंदू और मुस्लिमों की भागीदारी को लेकर फार्मूला तैयार किया था। इस फार्मूले को उस समय कांग्रेस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग, तीनों ने ही स्वीकार नहीं किया। जिसके कारण जिन्ना नाराज हो गए। वहीं बाल गंगाधर तिलक, आंदोलन के दौरान जेल चले गए थे। जिन्ना ने उनका मुकदमा लड़ा, उन्हें 6 साल की सजा हो गई। उसके बाद जिन्ना कांग्रेस में अलग-थलग पड़ गए थे। यह एक ऐसा समय था । जब मुस्लिम धार्मिक नेता मुस्लिम लीग का विरोध कर रहे थे। मौलाना सज्जाद मौलाना हाफिजुर रहमान तो फेल अहमद मंगलोरी जैसे मुस्लिम नेता भी मुस्लिम लीग की विभाजन कारी नीतियों का लगातार विरोध कर रहे थे 1929 में मोतीलाल नेहरू कमेटी की अनुशंसा को हिंदू महासभा ने मानने से इनकार कर दिया था इसमें 33 फ़ीसदी सीटें मुस्लिमों को आरक्षित करने की बात कही गई थी मुस्लिम लीग ने भी इसे मानने से इंकार कर दिया था। हिंदू मुस्लिम एकता में जिन्ना के सारे प्रयास जब विफल हो गए। नाराज होकर वह 1938 में मुस्लिम लीग में शामिल हो गए। उसके बाद से उन्होंने मुस्लिमों के पक्ष में राजनीति करना शुरू की। जिसके कारण वह पाकिस्तान के संस्थापक भी बने। यहां उल्लेखनीय है जिन्ना के पिता हिन्दू धर्म से मुस्लिम बने थे। कट्टरता और नमाज इत्यादि से उन्हें कोई लेना-देना नहीं था। इसके बाद भी अंग्रेजो की मदद से वह मस्लिमों के नेता बने। अंग्रेजों ने भारत में शासन करने के लिए बांटो और राज करो की जो नीति अपनाई थी। वह आज तक चली आ रही है। बंगाल में हिंदू मुस्लिमों का टकराव बढ़ता चला गया। उत्तर भारत के राज्यों में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग का कोई विशेष प्रभाव नहीं था। 1937 के बाद जब राज्यों को स्वतंत्रता दी गई। उस समय कांग्रेस के नेता स्वतंत्रता आंदोलन के कारण अधिकांश जेलों में रहे। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ने अंग्रेजों के संरक्षण के कारण पश्चिम बंगाल में गठबंधन की सरकार बना ली। 1942 में और उसके बाद जब यह देश में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। उस समय मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा सत्ता में भागीदारी कर रही थी। जिसके कारण स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों का बड़े पैमाने पर दमन हुआ। कांग्रेस अंतिम समय तक धार्मिक आधार पर विभाजन का विरोध करती रही। ब्रिटिश संसद ने भारत की आजादी के लिए जून 1948 की तारीख घोषित की थी। जून 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन को यह पता लगा, कि जिन्ना को बड़ी बीमारी है, और वह कुछ समय ही जिंदा रहेंगे। जिन्ना और लॉर्ड माउंटबेटन की 18 जुलाई 1947 के बाद कई गोपनीय बैठकें हुई। लॉर्ड माउंटबेटन ने जिन्ना को विभाजन के लिए तैयार किया। इंग्लैंड की सरकार द्वारा विभाजन के पेपर और मानचित्र पहले ही तैयार करा लिए गए थे। महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेस नेता जब विभाजन के उस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रहे थे। तब जिन्ना को 14 अगस्त 1947 पाकिस्तान का राष्ट्राध्यक्ष बनाकर लार्डमाउन्टवेटन ने उन्हें सत्ता सौंप दी। अंग्रेज सरकार ने पाकिस्तान को नए राष्ट्र की मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उसे एक नए राष्ट्र के के रूप में शामिल करा दिया। यह सब इतने गोपनीय तरीके से हुआ था कि कांग्रेस भारत पाकिस्तान विभाजन की बात समझ ही नहीं पाई। जब पाकिस्तान बन गया, उसके बाद मजबूरन कांग्रेस को भी भारत विभाजन की बात स्वीकार करनी पड़ी। लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू के माध्यम से विभाजन के लिए भारत के कांग्रेस नेताओं को सहमत कराया। तक जाकर 15 अगस्त को भारत स्वतंत्र हुआ। गांधी का आमरण अनशन और हत्या अंग्रेजों ने भारत का धार्मिक आधार पर भारत और पाकिस्तान का विभाजन तो कर दिया। किंतु इस विभाजन के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति बनी रहे। इसका कोई इंतजाम अंग्रेजो ने नहीं किया। 14 अगस्त 1947 को जैसे ही पाकिस्तान बनने की खबर आई। उसके बाद से भारत में अफवाहों का दौर बड़ी तेजी के साथ शुरू हो गया। मुस्लिमों का घबराकर पलायन शुरू हो गया। वहीं हिंदुओं ने भी मुसलमानों को भारत से पाकिस्तान भेजने के लिए कट्टरवादी संगठन सक्रिय हो गए। पाकिस्तान से भी हिंदुओं को भगाने के लिए दंगों की शुरुआत हो गई है। भारत और पाकिस्तान में विभाजन के बाद कम से कम 10लाख लोगों के मारे जाने की बात सामने आई। वहीं लगभग 1.50 करोड़ शरणार्थी पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान पहुंचे। अंग्रेजों ने जो बंटवारा किया था। उसके अनुसार विभाजन के साथ ही 55 करोड़ रुपए भारत सरकार को पाकिस्तान सरकार को सौंपने थे । विभाजन की खबर के बाद दोनों देशों में दंगे शुरू हो गए थे । भारत सरकार भी दंगों को रोकने में जुटी हुई थी। जिस तरह की अफवाह चल रही थी। उसमें पाकिस्तान में हिंदुओं को मारा जा रहा है यह अफवाह तेजी से फैली। उसके बाद पाकिस्तान में अफवाह फैली कि भारत में मुसलमानों को मारकर भगाया जा रहा है। महात्मा गांधी हिंदू और मुस्लिमों के बीच जो दंगे हो रहे थे । उसको रोकने के लिए आमरण अनशन पर बैठ गए। महात्मा गांधी ने दंगों को रोकने के लिए उस समय यह अफवाह भी फैली थी, कि भारत 55 करोड़ रुपए पाकिस्तान को नहीं दे रहा है। इस अफवाह को खत्म करने और दंगों को रोकने के लिए महात्मा गांधी ने भारत सरकार के ऊपर दबाव बनाया। गांधी भारत और पाकिस्तान विभाजन के बाद दंगे रोकने और दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास बढ़े। इसके लिए उन्होंने अनशन किया था। महात्मा गांधी के आमरण अनशन पर होने से भारत सरकार ने 55 करोड़ रुपए पाकिस्तान सरकार को ट्रांसफर की। इससे नाराज होकर नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की मंदिर में हत्या कर दी। जिससे एक बार फिर भारत में दंगे भड़क उठे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के लोगों के खिलाफ लोगों की नाराजगी बढ़ी। महात्मा गांधी की हत्या के बाद अंततोगत्वा हिंदू महासभा भारत के राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गई। उसके बाद हिंदू महासभा के विकल्प के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पर्दे के पीछे रहकर 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना कराई। इसके प्रथम संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी बने। 1952 में जब पहले आम चुनाव हुए, उसमें जनसंघ ने भाग लिया, और लोकसभा की 3 सीटों पर विजय प्राप्त की। 1957 के दूसरे आम चुनाव में जनसंघ को केवल 4 सीटें मिली 1962 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ को 14 सीटों पर विजय मिली। 1967 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ के सदस्यों की संख्या बढ़कर 35 हुई। 1968 में जनसंघ के संस्थापक सदस्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हुआ उसके बाद अटल बिहारी वाजपई जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए। 1971 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ को केवल 22 सीटें ही मिली। जनसंघ को अपनी स्थापना के दिन से ही स्थापित होने के लिए काफी मेहनत करना पड़ी। महात्मा गांधी की हत्या के पश्चात लोगों का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिन्दू महासभा और जनसंघ से मोह भंग हो गया था। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा। उसके बाद सत्ता में जनसंघ के नेताओं की भागीदारी हुई। उसके बाद 1980 के चुनाव में भाजपा के नाम से जनसंघ के नेता चुनाव मैदान में उतरे। उसके बाद से भाजपा भारत की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी बनी।


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